चारों तरफ वीरान है
ज़िंदगी हैरान है
तुम, मैं, और हम सब कमोबेश परेशान हैं।
ज़िंदगी हैरान है
तुम, मैं, और हम सब कमोबेश परेशान हैं।
सब परेशान हैं
हवाएं, साँसें, रूहें
नज़ारे, नज़रें, आँखें
सूरज, चाँद, तारे... सब
हवाएं, साँसें, रूहें
नज़ारे, नज़रें, आँखें
सूरज, चाँद, तारे... सब
तंगहाली, बदहवासी, बेहोशी
पसरे हैं चारों ओर
और आलम-ए-मातम
मौत से भी बदतर है
पसरे हैं चारों ओर
और आलम-ए-मातम
मौत से भी बदतर है
ज़िंदगी को खुद के लिए इतना छटपटाते
पहले कभी नहीं देखा
मौत को खुद से इतना दूर भागते
पहले कभी नहीं देखा
ज़िदगी और मौत की इस जद्दोजहद में
मैं, आप, हम सब
बहुत बुरी तरह पिस रहे हैं
पहले कभी नहीं देखा
मौत को खुद से इतना दूर भागते
पहले कभी नहीं देखा
ज़िदगी और मौत की इस जद्दोजहद में
मैं, आप, हम सब
बहुत बुरी तरह पिस रहे हैं
तुम्हारे इश्वर ने पकड़ा था उस दिन मुझे
जब मैं अकेला घूमने निकला था
कहाँ, पता नहीं
पूछने लगा तुम यहाँ अकेले ???
मैंने कहा - तुम साथ तो हो फिर मैं अकेला कहाँ ? तुम्हारा ईश्वर लजा गया
अपने ही सवाल से
और मुझे उसकी हैसियत समझ में आ गयी
तब से मैं नास्तिक हूँ
वो बाद में फिर मुझे मिला एक दिन
फिर वही सवाल
फिर वही जवाब
और इस बार तुम्हारा इश्वर भड़क गया
अब पता नहीं कब मिलेगा
कमबख्त बात करने वाला भी कोई नहीं बचा !!!
जब मैं अकेला घूमने निकला था
कहाँ, पता नहीं
पूछने लगा तुम यहाँ अकेले ???
मैंने कहा - तुम साथ तो हो फिर मैं अकेला कहाँ ? तुम्हारा ईश्वर लजा गया
अपने ही सवाल से
और मुझे उसकी हैसियत समझ में आ गयी
तब से मैं नास्तिक हूँ
वो बाद में फिर मुझे मिला एक दिन
फिर वही सवाल
फिर वही जवाब
और इस बार तुम्हारा इश्वर भड़क गया
अब पता नहीं कब मिलेगा
कमबख्त बात करने वाला भी कोई नहीं बचा !!!
बहुत सारे मायनों के बीच
बहुत सारे संबंधों के बीच
बहुत सारे सपनों, अंधेरों, उजालों के बीच
फंस गया हूँ मैं
न कोई रास्ता दिखता है
न कोई राहगीर
न ज़िन्दगी पास आती है, न मौत...
बहुत सारे संबंधों के बीच
बहुत सारे सपनों, अंधेरों, उजालों के बीच
फंस गया हूँ मैं
न कोई रास्ता दिखता है
न कोई राहगीर
न ज़िन्दगी पास आती है, न मौत...
सारी वीरानियाँ समेट कर
दफ़्न हो जाना चाहता हूँ कहीं
ताकि पूरी कायनात में
कही कोई खामोशी न बचे
और उस जिंदादिली में
तुम्हारा इश्वर
मेरी तन्हाई
सारी उम्मीदें
सारे सपने
अँधेरे, उजाले
हवाएं, साँसें, रूहें
नज़ारे, नज़रें, आँखें
सूरज, चाँद, सितारे
सब विलीन हो जाएँ...
दफ़्न हो जाना चाहता हूँ कहीं
ताकि पूरी कायनात में
कही कोई खामोशी न बचे
और उस जिंदादिली में
तुम्हारा इश्वर
मेरी तन्हाई
सारी उम्मीदें
सारे सपने
अँधेरे, उजाले
हवाएं, साँसें, रूहें
नज़ारे, नज़रें, आँखें
सूरज, चाँद, सितारे
सब विलीन हो जाएँ...
मनीष
14/11/2013
14/11/2013