1)
आज की शाम, बरबस ही मन हो रहा है
ज़िंदगी की शाम की कल्पना करूँ
सूखते पीपल की डाल पर
उस पत्ते को एक-टक निहार रहा हूँ
जो इस तेज़ आंधी में
पेड़ से जुड़े रहने की अपनी कोशिशों में
कोई कसर नहीं छोड़ रहा
वो भी शायद इसी खौफ़ में है
कि जिसके साथ वो हमेशा रहा है
या रहना चाहा है
वो इस शाम के बाद
फिर मिले न मिले
दिन का अंधकार
ज़िंदगी के अंधकार में न बदल जाए...
2)
ज़हन में बस एक ही ख़याल
याद आ रही हो तुम
जिंदगी कि किसी शाम
तुम जब भी कभी मिलोगी
मेरी आखिरी सांस से ठीक पहले तक
मेरी ख़्वाहिश होगी
तुम एक बार खुलकर मुस्कराओ
एक बार, मैं चूम लूँ तुम्हारे होंठ
और पूरी जिंदगी पर हमेशा के लिए
अंकित हो जाए मेरे प्रेम का भाव
जि़ंदगी के अंधकार में विलीन हो जाने से ठीक पहले
हमारे मिलने की संतुष्टि
शून्यमान कर दे हमारी
एक दूसरे से सारी शिकायतें
तुम्हारा खिलखिला कर हंसना
पूरे ब्रह्मांड में गूंजायमान हो
कहीं भी, किसी भी कोने में
कोई भी, मेरी तरह परित्यक्त न रह जाए...
मनीष कु. यादव
01/02/2015
आज की शाम, बरबस ही मन हो रहा है
ज़िंदगी की शाम की कल्पना करूँ
सूखते पीपल की डाल पर
उस पत्ते को एक-टक निहार रहा हूँ
जो इस तेज़ आंधी में
पेड़ से जुड़े रहने की अपनी कोशिशों में
कोई कसर नहीं छोड़ रहा
वो भी शायद इसी खौफ़ में है
कि जिसके साथ वो हमेशा रहा है
या रहना चाहा है
वो इस शाम के बाद
फिर मिले न मिले
दिन का अंधकार
ज़िंदगी के अंधकार में न बदल जाए...
2)
ज़हन में बस एक ही ख़याल
याद आ रही हो तुम
जिंदगी कि किसी शाम
तुम जब भी कभी मिलोगी
मेरी आखिरी सांस से ठीक पहले तक
मेरी ख़्वाहिश होगी
तुम एक बार खुलकर मुस्कराओ
एक बार, मैं चूम लूँ तुम्हारे होंठ
और पूरी जिंदगी पर हमेशा के लिए
अंकित हो जाए मेरे प्रेम का भाव
जि़ंदगी के अंधकार में विलीन हो जाने से ठीक पहले
हमारे मिलने की संतुष्टि
शून्यमान कर दे हमारी
एक दूसरे से सारी शिकायतें
तुम्हारा खिलखिला कर हंसना
पूरे ब्रह्मांड में गूंजायमान हो
कहीं भी, किसी भी कोने में
कोई भी, मेरी तरह परित्यक्त न रह जाए...
मनीष कु. यादव
01/02/2015