तुम्हारी मुस्कान

i)
तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है, जहां से हर बार
नए सिरे से ज़िंदगी शुरू होती है

बीती ज़िंदगी के ग़मों का सारा अंबार
किसी बक्से में कैद कर
सुदूर किसी जंगल में छोड़ आता हूँ
और वहां से निकलता हूँ
सिर्फ तुम्हारी मुस्कान के साथ

घने जंगल के अँधेरे से बाहर निकलते हुए
उम्मीद की रौशनी साथ हो लेती है

उम्मीदों की रौशनी सिर्फ रौशनी नहीं है
मेरी धड़कनें हैं, जिनका न होना
खतरे में डाल सकता है मेरा अस्तित्व

जंगल से गांव, गांव से शहर
शहर से देस, देस से दुनिया
साथ ले कर घूमता हूँ
तुम्हारी अविस्मरणीय मुस्कान

मैं जानता हूँ तुम मेरी नहीं हो
तुम्हारा देस-शहर-गांव-जंगल
ये सब मेरे नहीं है
तुम्हारा दिल मेरा नहीं है
मगर, तुम्हारी मुस्कान मेरी है

जब तुम्हारी मुस्कान भी मेरी नहीं होगी
मैं पागलों की तरह भागूंगा
दुनिया से देस, देस से शहर
शहर से गांव और गांव से जंगल

जंगल से... वापिस उसी बक्से में...
हमेशा हमेशा के लिए...

तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है...

मनीष
11/04/2015

ii)
ट्रेन की खिड़की से
आसमान में टिमटिमाते तारे
मुझे अपना प्रतिबिम्ब सा लगते हैं
किसी की मुस्कान उधार लिए
घूमते फिरते हैं दर-ब-दर

ये जीवन
दुनिया की असीम संभावनाओं का आकाश है
तुम मेरा सूरज हो

तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है...

-मनीष
17/04/2015