मैंने उससे कहा
तुम चुन लो
कि तुम्हें क्या चाहिए
आज की शाम
या तो तुम एक नाटक लिखोगे
या फिर गुरुद्वारे में जाकर रहोगे
शाम हुई
मैंने उससे फिर पूछा
तुमने क्या चुना
उसने कहा - सड़क!
मैं फिर उसके साथ चल पड़ा।
- मनीष कुमार यादव
04.08.2016
दास्तान-ए-ज़िंदगी भी कैसी अजीब है, रिश्तों, रास्तों और मंजिलों का भंवर भर है... - मनीष यादव