बाकी सबकुछ

दिल्लगी, रुसवाई, बेवफाई और बेहयाई
बाकी सबकुछ हुआ, इकरार-ए-मोहब्बत के सिवा...

वफा-ए-ज़िंदगी से...

वफा-ए-ज़िंदगी से हमने कब, क्या पाया,
जो छोड़कर चला गया, वो फिर नहीं आया...

दिन रात टूटते हैं सपने...

दिन रात टूटते हैं सपने, सपनों का क्या है
बात-बात पे छूटते हैं अपने, अपनों का क्या है
खोखली हंसी से ढाँपते हैं हम, ज़ख्म-ए-जिंदगी
गहरे, छिछले, सब भरेंगे, ज़ख्मों का क्या है...

बातें नहीं थमतीं...


बढ़ती ही चली जाती हैं ये सांसें नहीं थमतीं,
तुम्हारी याद जब आती है फिर आंखें नहीं थमतीं
यूं तो हर कोई सिमट जाता है चंद किस्सों के बाद,
तुम्हारी बात जब खुलती है फिर बातें नहीं थमतीं

हम भी हुए बावले बड़े, सौगात-ए-इश्क पर,
ये भूलकर कि आजकल, सौगातें नहीं थमतीं...