याद आना क्या होता है

मसरूफियत में भी याद रखते हैं याद करना
वो खूब जानते हैं आज़माना क्या होता है
जानना हो तो कोई हमसे ये पूछे
मुद्दतों बाद किसी का साथ आना क्या होता है
ख़ौफ़ज़दा भी रहते हैं और परवाह भी नहीं करते
जाने कमबख्त ये ज़माना क्या होता है
तमाम ग़मों के बाद भी मुस्कराना क्या होता है
उन्हें क्या पता याद आना क्या होता है

-मनीष
06/05/2015

ग़ज़ल

मिल्कियत की चाह में आवाम है बहुत
मुफलिसी का दौर देखो काम है बहुत
दिल्ली तुम्हारी देखकर मायूस हो गए
थोड़ी है ज़िन्दगी, कत्ल-ए-आम है बहुत
उम्मीद थी एक सुबह सी जब घर से चले थे
आ के इधर देखते हैं शाम है बहुत
इंसानियत की कीमतें तो कौड़ियों के मोल है
शक्ल के हिसाब का अब दाम है बहुत
कुछ ज़िन्दगी में बन सको तो बन लो अब 'मनीष'
यहाँ प्यार करने वाले तो बदनाम हैं बहुत।

-मनीष
26/05/2015

आरज़ू...

उभरे हुए ज़ख्मों से रहा दर्द का सैलाब
कहते रहे रक़ीब लाओ हम रफू करें
सड़क छाप कोई पागल कोई समझता रहा हमें
भला कौन से जज़्बात से अब हम वज़ू करें
किसकी करें मिन्नतें क्या जुस्तजू करें
कैसे मिले वो जिससे दिल की गुफ्तगू करें
सबकी ही जानिब से मिले इनकार बस 'मनीष'
अब किस सितम से दिल्लगी की आरज़ू करें।

-मनीष
26/04/2015

हम गरीब हैं...

आपकी ही मिल्कियत है, आपकी आवाम है
हर तमाचे-जूते पे लिखा हमारा नाम है
आपकी सब हरकतों पे चुप्पी सधी है देखता हूँ
हमारी ख़ामोशी की भी चर्चा सर-ए-आम है
आप मालिक हैं, सरकार हैं, कोई हिम्मत करे तो कैसे
हमारा क्या है, गरीब हैं, मुफ़्त में बदनाम हैं

-मनीष
17/04/2015

दोस्त बनकर

दोस्त बनकर एहसानों का इश्तेहार करेगा
देखें ज़माना क्या रुख अख्तियार करेगा
दुनिया भर के काम हैं दुनिया के पास 'मनीष'
कोई क्यों भला तुझको कभी प्यार करेगा

-मनीष
14/04/2014

तुम्हारी मुस्कान

i)
तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है, जहां से हर बार
नए सिरे से ज़िंदगी शुरू होती है

बीती ज़िंदगी के ग़मों का सारा अंबार
किसी बक्से में कैद कर
सुदूर किसी जंगल में छोड़ आता हूँ
और वहां से निकलता हूँ
सिर्फ तुम्हारी मुस्कान के साथ

घने जंगल के अँधेरे से बाहर निकलते हुए
उम्मीद की रौशनी साथ हो लेती है

उम्मीदों की रौशनी सिर्फ रौशनी नहीं है
मेरी धड़कनें हैं, जिनका न होना
खतरे में डाल सकता है मेरा अस्तित्व

जंगल से गांव, गांव से शहर
शहर से देस, देस से दुनिया
साथ ले कर घूमता हूँ
तुम्हारी अविस्मरणीय मुस्कान

मैं जानता हूँ तुम मेरी नहीं हो
तुम्हारा देस-शहर-गांव-जंगल
ये सब मेरे नहीं है
तुम्हारा दिल मेरा नहीं है
मगर, तुम्हारी मुस्कान मेरी है

जब तुम्हारी मुस्कान भी मेरी नहीं होगी
मैं पागलों की तरह भागूंगा
दुनिया से देस, देस से शहर
शहर से गांव और गांव से जंगल

जंगल से... वापिस उसी बक्से में...
हमेशा हमेशा के लिए...

तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है...

मनीष
11/04/2015

ii)
ट्रेन की खिड़की से
आसमान में टिमटिमाते तारे
मुझे अपना प्रतिबिम्ब सा लगते हैं
किसी की मुस्कान उधार लिए
घूमते फिरते हैं दर-ब-दर

ये जीवन
दुनिया की असीम संभावनाओं का आकाश है
तुम मेरा सूरज हो

तुम्हारी मुस्कान सिर्फ मुस्कान नहीं है
एक पड़ाव है...

-मनीष
17/04/2015

उनका मुस्कुराना...

हमारे हंसाने से ज़्यादा किसी का रुलाना पसंद आया
हमें याद रखना पसंद आया, उन्हें भूल जाना पसंद आया
ज़िन्दगी भर की रूसवाई चीखती रही खामोशियों में
दुनिया को हर पल उनका मुस्कुराना पसंद आया

- मनीष
28/01/2015

एक हारा हुआ आदमी

एक हारा हुआ आदमी
सिर्फ एक हारा हुआ आदमी होता है
उससे ये पूछना
कि वो किसी को
प्यार करता है या नहीं
बिना किसी गलती के उसे
एक ज़ोरदार थप्पड़ मारने जैसा है

एक हारा हुआ आदमी
हमेशा इस डर में जीता है
कि जीते हुए लोगों से भरी ये दुनिया
उसे बिना प्यार
मरने को विवश न कर दे

एक हारा हुआ आदमी
दुनिया की हर चीज़ को
बहुत...
बहुत प्यार करता है।

-मनीष
13/03/2015

परित्यक्त

1)
आज की शाम, बरबस ही मन हो रहा है
ज़िंदगी की शाम की कल्पना करूँ

सूखते पीपल की डाल पर
उस पत्ते को एक-टक निहार रहा हूँ
जो इस तेज़ आंधी में
पेड़ से जुड़े रहने की अपनी कोशिशों में
कोई कसर नहीं छोड़ रहा

वो भी शायद इसी खौफ़ में है
कि जिसके साथ वो हमेशा रहा है
या रहना चाहा है
वो इस शाम के बाद
फिर मिले न मिले
दिन का अंधकार
ज़िंदगी के अंधकार में न बदल जाए...

2)
ज़हन में बस एक ही ख़याल
याद आ रही हो तुम

जिंदगी कि किसी शाम
तुम जब भी कभी मिलोगी
मेरी आखिरी सांस से ठीक पहले तक
मेरी ख़्वाहिश होगी
तुम एक बार खुलकर मुस्कराओ
एक बार, मैं चूम लूँ तुम्हारे होंठ
और पूरी जिंदगी पर हमेशा के लिए
अंकित हो जाए मेरे प्रेम का भाव

जि़ंदगी के अंधकार में विलीन हो जाने से ठीक पहले
हमारे मिलने की संतुष्टि
शून्यमान कर दे हमारी
एक दूसरे से सारी शिकायतें
तुम्हारा खिलखिला कर हंसना
पूरे ब्रह्मांड में गूंजायमान हो

कहीं भी, किसी भी कोने में
कोई भी, मेरी तरह परित्यक्त न रह जाए...


मनीष कु. यादव
01/02/2015