आरज़ू...

उभरे हुए ज़ख्मों से रहा दर्द का सैलाब
कहते रहे रक़ीब लाओ हम रफू करें
सड़क छाप कोई पागल कोई समझता रहा हमें
भला कौन से जज़्बात से अब हम वज़ू करें
किसकी करें मिन्नतें क्या जुस्तजू करें
कैसे मिले वो जिससे दिल की गुफ्तगू करें
सबकी ही जानिब से मिले इनकार बस 'मनीष'
अब किस सितम से दिल्लगी की आरज़ू करें।

-मनीष
26/04/2015