सज़ायाफ्ता...

कभी पास होने की खुशी
कभी दूर होने का ग़म
कुछ ख़्वाहिशों से भी ज़्यादा
कुछ ज़रूरत से भी कम

ममता भरी कुर्बानियों में लालच सी भूख
सद्भावना के कर्तव्य में दुर्भावना की बू
सेवा के धर्म में शोषण का पाप
जलता हुआ मन, ज़िंदगी राख़...

सारे रास्ते खुले हैं
कहीं सुकून-ओ-पनाह नहीं है
अकेला ही बढ़ चला हूं अब
कोई हमराह नहीं है

बेनाम-बदनाम हूं
बद-चलन, बे-रास्ता हूं
तुम समझते हो ज़िंदा हूं?
कैद-ए-बा-मशक्कत, सज़ायाफ्ता हूं...