ज़िंदगी करवटें बदलेगी भी तो कितनी
दिन की शुरुआत तो अंगार से ही होनी है
एक वक्त था हम भी ईश्वर को याद करते थे हर सुबह
मगर बाद में हमारा ईश्वर बदल गया
और आज उसके चले जाने के बाद
दिन की शुरुआत फिर भी अंगार से होती है
फर्क बस इतना है मेरे दोस्त
तब हमारे हाथों में अगरबत्तियों की अंगार होती थी
और अब, सिगरेट की अंगार होती है
मैं आज भी इसी कश्मकश में हूं
कि अपना ईश्वर किसे मानूं
और, अगरबत्तियों और सिगरेट की अंगारों में
समाज के लिए ज़्यादा बड़ा खतरा कौन सी चीज़ है?
- मनीष कुमार यादव