याद रहेगा वादा...

अब तक बड़ा बेचैन था, किसी की बेरुखी-ओ-बेदिली से
उसने महज़ आज़माने से, कुछ ज़्यादा तो किया
कल से ज़रा सुकून से हूं, कि रुला रखने का ही सही
सितमगर ने मुझसे कोई वादा तो किया...


              - मनीष कुमार यादव 

मोहब्बत बारिश है

मोहब्बत बारिश है
जिसे छूने की ख्वाहिश में फैली हथेलियाँ
वो पा लेती हैं
जिसे बारिश से भागता हुआ कोई भी इंसान
कभी नहीं पा सकता

चमकती आँखें देखती हैं
सामने वाले की आँखों में वो चमक
जिसे और कोई नहीं देख सकता

कौन कहता है हाथ खाली रह जाते हैं?

प्रेयसी की याद में भींगते हुए उस प्रेमी पर एक नज़र डालो
संभावनाओं के अनंत आकाश की ओर नज़रें टिकाये,
दोनों बाहें फैलाए-

बरसो मेघा, अविरल बरसो... 

                       - मनीष कुमार यादव 

तू माना करे तो मैं भी हर बात माना करूँ...

तेरी वफ़ा, ना-वफ़ा सब देख ली है अब तक
अच्छा है न तेरी गली आना-जाना करूँ
क्या कहूँ तुझसे और कितनी सुनूं तेरी
तू माना करे तो मैं भी हर बात माना करूँ...

             - मनीष कुमार यादव

प्यार का पहला खत


उनके लिए लाया गया वो लाल गुलाब
आज भी पड़ा है
मेरे कमरे में...

किसी के कोमल हाथों का स्पर्श पाने के इंतज़ार में
उसकी एक-एक पंखुड़ी
मुरझा गयी है
मेरे अरमानों की तरह...


गुलाब में लगी पत्तियां
बेकरार हैं
कि कब कोई आएगा और उन्हें छूकर
फिर से कर देगा जीवित
मेरी बेकरार नज़रों की तरह...

और, वो डंठल
जो आधार है हमारे रिश्ते की परिभाषा का
मेरा अमिट अमर प्रेम...
वो भी मुरझा कर, सूख कर
अब टूटने की कगार पर है...

सब कुछ मुरझा गया है
संसार, मौसम
नदी-पर्वत-पेड़ों का बना
ये जंगल...
...मेरा दिल...

...और एक तुम्हारी याद है कि
जेहन में अब तक ताज़ा है...


      - मनीष कुमार यादव

आँखों का तारा

किसी को आँखों का तारा बना लो
फिर वो टिमटिमाने से मना कर दे
तो दिल में बड़े अंदर तक चुभता है...

            - मनीष कुमार यादव

दिल्ली की आजादी



स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर
दिल्ली के लोगों को देखकर मैं असमंजस में पड़ जाता हूँ

उनको तिरंगे रूपी पतंग उड़ाते देखकर
जी भर हंसने का मन करता है
या फिर जी भर रो लेने का
कैसी बदनसीब है मेरे देश की राजधानी
ज़िंदगी में हर संभव रफ़्तार से तेज
दौडती भागती दिल्ली:

वही दिल्ली, जो मेरे देश की राजधानी है
वही दिल्ली, जंहा के लोग
विदेशी कंपनियों के गुलाम हैं
या खाप जैसी मानसिकताओं के गुलाम हैं
या हिंदू मुसलमान में भेद करना जानते हैं
या फिर देश के नेताओं जैसे शरीफ लोगों की
हर सफल योजना के लाभार्थी हैं

विश्वास मानिए
दिल्ली के लोगों को देखकर
आपका भी मन होगा
जी भर हंसने का
या फिर, जी भर रो लेने का

मैं असमंजस में पड़ जाता हूँ
कि तमाम दिशाओं से अपने लिए
दरवाज़े बंद रखने वाले लोगों की
खुशियों का शहर बन गयी है दिल्ली
तिरंगे रूपी पतंग की वो डोर
जिसे वो अपने सिरे से पतंग को हवा में
अनाथ बेसहारा और बेलगाम छोड़कर
खुश होते हैं
इतने खुश, कि वो भूल जाते हैं
अपने सारे बंधन, सारे विचार, सारी मानसिकताएं
और तभी हम जय हिंद से ज़्यादा हैप्पी इंडिपेंडेंस डे सुन पाते हैं
इन दिनों भारत कि स्वतंत्रता भी तो ग्लोबल हो गयी है

मगर उस दिन दिल्ली क्या करेगी
जब खत्म हो जायेंगे कागज़
या खाप, या हिंदू मुसलमान

बड़ा सवाल है कि
क्या दिल्ली कभी अपने आपको उस पतंग की तरह उड़ाकर छोडेगी
उन्मुक्त, स्वच्छंद?

बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण जवाब है- शायद नही!

क्यूंकि स्टॉक मार्केट में थोड़ी सी उछाल पाने के बाद
दिल्ली डरती है कि
वो औंधे मुह गिर पड़ेगी
और तब भारत आज़ाद नहीं रह पायेगा!

-                      -    मनीष कुमार यादव