उलझी हुई दुनिया को पाने की जिद की
जो अपना न हुआ उसे अपनाने की जिद की
तूफानों के बावजूद, तुम्हें अचरज होगा जानकर
समंदर के साहिल पे घर बनाने की जिद की
उसी दुनिया ने जलाकर राख कर दी हर मेरी ख्वाहिश
जिसकी हर ख्वाहिश को दुनिया बनाने की जिद की
मैं भी देखूंगा तेरी बेदिली में कितना है दम-ओ-ख़म
'मैं अभी हारा नहीं!' ये ज़माने से जिद की...
- मनीष कुमार यादव
- मनीष कुमार यादव