समझ से परे है...

1.

वो भी कहते हैं
अपनी यारी काबिल-ए-मिसाल है
जो अगर आप मर भी रहे हों
एक बूँद पानी तक नहीं पूछते।

2. 


वो कहते हैं की दोस्त ज़रूरी होते हैं
मैंने कहा दोस्त ज़रूरी होते हैं
ज़रूरतों के लिए नहीं, ज़िंदगी के लिए
मैं समझ नहीं पाया कि
दोस्ती की मेरी परिभाषा गलत है
या दोस्ती के उनके मायने

3. 


वो नहीं आये मेरे साथ मेरी ज़रूरत पर
देते रहे हवाला
दुनियादारी, अनुभव और मोहब्बत जैसी चीज़ों का
गोया मुझे इनसे परहेज हो

4. 


खुद को गुवेरा, मुक्तिबोध, मार्क्स
और विद्रोही की कड़ी का हिस्सा मानने वाले ये दोस्त
चाहते हैं दूर रखना अपनी ज़िन्दगी को
विचारधारा और आन्दोलन के साए से भी

5. 


वो ये भूल गए हैं कि
आन्दोलन और विचारधारा में निजी कुछ नहीं होता
ज़रूरत दोस्ती नहीं होती
क्रांति, दुनियादारी, अनुभव और मोहब्बत
सब आते हैं
बहस और फेरबदल के दायरे में

मैं कौन सी क्रांति का लोहा मानूं ?
और कौन सी दोस्ती में रखूँ भरोसा ?

समझ से परे है...

21.12.2013